ब्राह्मण एक कर्म नही धर्म है
ब्राह्मण रूठ तो परशुराम भूख तो सुदामा
ब्राह्मण घमंडी तो रावण
ब्राह्मण घमंडी तो रावण
ब्राह्मण
ब्राह्मण ( विप्र, द्विज, द्विजोत्तम, भूसुर ) हिन्दू समाज की एकजाति है | ब्राह्मण को विद्वान, सभ्य और शिष्ट माना जाता है।एतिहासिक रूप से हिन्दू समाज में, व्यवसाय-आधारित चार वर्णहोते हैं। ब्राह्मण ( आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी ), क्षत्रिय(धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी व कॄषक वर्ग) तथा शूद्र ( शिल्पी,श्रमिक समाज ) । व्यक्ति की विशेषता, आचरण एवं स्वभाव सेउसकी जाति निर्धारित होती थी । विद्वान, शिक्षक, पंडित,बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक तथा ज्ञान-अन्वेषी ब्राह्मणों की श्रेणी मेंआते थे |
यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: --ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म ( अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान ) कोजानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर ज्ञाता" | किन्तु हिन्दूसमाज में एतिहासिक स्थिति यह रही है कि पारंपरिक पुजारीतथा पंडित ही ब्राह्मण होते हैं ।
किन्तु आजकल बहुत सारे ब्राह्मण धर्म-निरपेक्ष व्यवसाय करतेहैं और उनकी धार्मिक परंपराएं उनके जीवन से लुप्त होती जारही हैं | यद्यपि भारतीय जनसंख्या में ब्राह्मणों का प्रतिशत कमहै, तथापि धर्म, संस्कॄति, कला, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान तथा उद्यम केक्षेत्र में इनका योगदान अपरिमित है |
इतिहास
ब्राह्मण समाज का इतिहास प्राचीन भारत के वैदिक धर्मसे आरंभ होता है| "मनु-स्मॄति" के अनुसार आर्यवर्तवैदिक लोगों की भूमि है | ब्राह्मण व्यवहार का मुख्यस्रोत वेद हैं | ब्राह्मणों के सभी सम्प्रदाय वेदों से प्रेरणालेते हैं | पारंपरिक तौर पर यह विश्वास है कि वेदअपौरुषेय ( किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे ) तथाअनादि हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकीवैधता शाश्वत है | वेदों को श्रुति माना जाता है ( श्रवणहेतु , जो मौखिक परंपरा का द्योतक है ) |
धार्मिक व सांस्कॄतिक रीतियों एवम् व्यवहार मेंविवधताओं के कारण और विभिन्न वैदिक विद्यालयों केउनके संबन्ध के चलते, ब्राह्मण समाज विभिन्नउपजातियों में विभाजित है | सूत्र काल में, लगभग१००० ई.पू से २०० ई.पू ,वैदिक अंगीकरण के आधारपर, ब्राह्मण विभिन्न शाखाओं में बटने लगे | प्रतिष्ठितविद्वानों के नेतॄत्व में, एक ही वेद की विभिन्न नामों कीपृथक-पृथक शाखाएं बनने लगीं | इन प्रतिष्ठित ऋषियोंकी शिक्षाओं को सूत्र कहा जाता है | प्रत्येक वेद काअपना सूत्र है | सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूलनियमों वाले सूत्रों को धर्म सूत्र कहते हैं , आनुष्ठानिकवालों को श्रौत सूत्र तथा घरेलू विधिशास्त्रों की व्याख्याकरने वालों को गॄह् सूत्र कहा जाता है | सूत्रसामान्यतया पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं |
ब्राह्मण शास्त्रज्ञों में प्रमुख हैं अग्निरस , अपस्तम्भ , अत्रि, बॄहस्पति , बौधायन , दक्ष , गौतम , वत्स,हरित ,कात्यायन , लिखित , मनु , पाराशर , समवर्त , शंख ,शत्तप , ऊषानस , वशिष्ठ , विष्णु , व्यास , यज्ञवल्क्यतथा यम | ये इक्कीस ऋषि स्मॄतियों के रचयिता थे |स्मॄतियां में सबसे प्राचीन हैं अपस्तम्भ , बौधायन ,गौतम तथा वशिष्ठ |
ग्फ्र्रेवेर्ह्ह्ग्फ्दीवेयू फ्र्ग्र्वेजुजुकुयुजुज्== ब्राह्मण निर्धारण -जन्म या कर्म से == ब्राह्मण का निर्धारण माता-पिता कीजाती के आधार पे ही होने लगा है | स्कन्दपुराण मैंषोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्माद्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ मेंबताया गया है ,
जन्मना जायते शूद्रः
संस्कारात् द्विज उच्यते |
शापानुग्रहसामर्थ्यं
तथा क्रोधः प्रसन्नता |
तथा क्रोधः प्रसन्नता |
अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म सेब्राह्मण भी शुद्र, के समान ही होता है |
ब्राह्मण का स्वभाव
शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च |
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||
चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य,सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वास |वस्तुतः ब्राह्मण को जन्म से शूद्र कहा है । यहाँ ब्राह्मणको क्रियासे बताया है । ब्रह्म का ज्ञान जरुरी है । केवलब्राहमण के यहाँ पैदा होने से वह नाममात्र का ब्राहमणहोता है व शूद्र के समान ब्राहमणयोग्य कृत्यों से वंचितहोता है, उपनयन-संस्कार के बाद ही पूरी तरह ब्राहमणबन कर ब्राहमणयोग्य कृत्यों का अधिकारी होता है।
ब्राह्मण के कर्त्तव्य
निम्न श्लोकानुसार एक ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य इसप्रकार हैं
अध्यापनम् अध्ययनम् यज्ञम् यज्ञानम् तथा | ,
दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयात ||
दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयात ||
शिक्षण, अध्ययन, यज्ञ करना , यज्ञ कराना , दान लेनाब्राह्मण के कर्त्तव्य हैं |
ब्राह्मण का व्यवहार
ब्राह्मण सनातन धर्म के नियमों का पालन करते हैं जैसेवेदों का आज्ञापालन , यह विश्वास कि मोक्ष तथाअन्तिम सत्य की प्राप्ति के अनेक माध्यम हैं , यह किईश्वर एक है किन्तु उनके गुणगान तथा पूजन हेतुअनगिनत नाम तथा स्वरूप हैं जिनका कारण है हमारेअनुभव, संस्कॄति तथा भाषाओं में विविधताए | ब्राह्मणसर्वेजनासुखिनो भवन्तु ( सभी जन सुखी तथा समॄद्ध हों) एवम् वसुधैव कुटुम्बकम ( सारी वसुधा एक परिवार है) में विश्वास रखते हैं | सामान्यत: ब्राह्मण केवलशाकाहारी होते हैं (बंगाली, उडिया तथा कुछ अन्यब्राह्मण तथा कश्मीरी पन्डित इसके अपवाद हैं) |
दिनचर्या
हिन्दू ब्राह्मण अपनी धारणाओं से अधिक धर्माचरण कोमहत्व देते हैं | यह धार्मिक पन्थों की विशेषता है |धर्माचरण में मुख्यतया है यज्ञ करना | दिनचर्या इसप्रकार है - स्नान , सन्ध्यावन्दनम् , जप , उपासना ,तथा अग्निहोत्र | अन्तिम दो यज्ञ अब केवल कुछ हीपरिवारों में होते हैं | ब्रह्मचारी अग्निहोत्र यज्ञ के स्थानपर अग्निकार्यम् करते हैं | अन्य रीतियां हैं अमावस्यतर्पण तथा श्राद्ध |
: नित्य कर्म तथा काम्य कर्म
संस्कार
ब्राह्मण अपने जीवनकाल में सोलह प्रमुख संस्कार करतेहैं | जन्म से पूर्व गर्भधारण , पुन्सवन (गर्भ में नरबालक को ईश्वर को समर्पित करना ) , सिमन्तोणणयन( गर्भिणी स्ज्ञी का केश-मुण्डन ) | बाल्यकाल मेंजातकर्म ( जन्मानुष्ठान ) , नामकरण , निष्क्रमण ,अन्नप्रासन , चूडकर्ण , कर्णवेध | बालक के शिक्षण-काल में विद्यारम्भ , उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत् ,वेदारम्भ , केशान्त अथवा गोदान , तथा समवर्तनम् यास्नान ( शिक्षा-काल का अन्त ) | वयस्क होने परविवाह तथा मृत्यु पश्चात अन्त्येष्टि प्रमुख संस्कार हैं |
सम्प्रदाय
दक्षिण भारत में ब्राह्मणों के तीन सम्प्रदाय हैं - स्मर्तसम्प्रदाय , श्रीवैष्णव सम्प्रदाय तथा माधव सम्प्रदाय |
ब्राह्मणों की उपजातियां
ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों सेजाना जाता है, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछभागों में त्यागी, बिहार व बंगाल में भूमिहार, जम्मूकश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल,मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में अनाविल,महाराष्ट्र में चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में अयंगर एवंहेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवंअय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव तथा उड़ीसा मेंदास एवं मिश्र आदि बिहार में मैथिल ब्राह्मण
ब्राह्मणों की वर्तमान स्थिति
आधुनिक भारत के निर्माण के विभिन्न क्षेत्रों , जैसेसाहित्य , विज्ञान एवम् प्रौद्यौगिकी , राजनीति , संस्कॄति, पाण्डित्य , धर्म में ब्राह्मणों का अपरिमित योगदान है |प्रमुख क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों मे बालगंगाधर तिलक, चंद्रशेखर आजाद इत्यादि है। लेखकोऔर विद्वानों मे कालिदास, रविन्द्र नाथ ठाकुर ,गंगा धरशर्मा "हिंदुस्तान" है।
भूमिहार ब्राह्मण
भूमिहार या बाभन (अयाचक ब्राह्मण) एक ऐसी सवर्ण जाति हैजो अपने शौर्य, पराक्रम एवं बुद्धिमत्ता के लिये जानी जाती है।बिहार, पश्चिचमी उत्तर प्रदेश एवं झारखण्ड में निवास करने वालेभूमिहार जाति अर्थात अयाचक ब्रहामणों को त्यागी नाम कीउप-जाति से जाना व पहचाना जाता हैं। मगध के महान पुष्यमित्र शुंग और कण्व वंश दोनों ही ब्राह्मण राजवंश भूमिहारब्राह्मण (बाभन) के थे भूमिहार ब्राह्मण भगवन परशुराम कोप्राचीन समय से अपना मूल पुरुष और कुल गुरु मानते है
भूमिहार ब्राह्मण समाज में कुल १० उपाधिय है १-पाण्डेय 2-तिवारी/त्रिपाठी 3- मिश्र 4-शुक्ल 5-यजी ६-करजी 7-उपाध्यय8-शर्मा 9-ओझा 10-दुबे\द्विवेदी इसके अलावा राजपाट औरज़मींदारी के कारन एक बड़ा भाग भूमिहार ब्राह्मण का राय,शाही ,सिंह, उत्तर प्रदेश में और शाही , सिंह (सिन्हा) , चौधरी(मैथिल से ) ,ठाकुर (मैथिल से ) बिहार में लिखने लगा बहुत सेभूमिहार या बाभन भी लिखते है
भूमिहार ब्राह्मण पुरोहित
भूमिहार ब्राह्मण कुछ जगह प्राचीन समय से पुरोहिती करते चलेआ रहे है अनुसंधान करने पर पता लगा कि प्रयाग की त्रिवेणीके सभी पंडे भूमिहार ही तो हैं।हजारीबाग के इटखोरी औरचतरा थाने के 8-10 कोस में बहुत से भूमिहार ब्राह्मण, राजपूत,बंदौत , कायस्थ और माहुरी आदि की पुरोहिती सैकड़ोंवर्ष से करते चले आ रहे हैं और गजरौला, ताँसीपुर के त्यागीराजपूतों की यही इनका पेशा है। गया के देव के सूर्यमंदिर केपुजारी भूमिहार ब्राह्मण ही मिले। इसी प्रकार और जगह भीकुछ न कुछ यह बात किसी न किसी रूप में पाई गई। हलाकिगया के देव के सूर्यमंदिर का बड़ा हिसा सकद्विपियो को बेचा जाचूका है
भूमिहार ब्राह्मण की उत्पति
भूमिहार ब्राह्मण भगवन परशुराम को प्राचीन समय से अपनामूल पुरुष और कुल गुरु मानते है
१. एम.ए. शेरिंग ने १८७२ में अपनी पुस्तक Hindu Tribes & Cast में कहा है कि, "भूमिहार जाति के लोग हथियार उठानेवाले ब्राहमण हैं (सैनिक ब्राह्मण)।"
२. अंग्रेज विद्वान मि. बीन्स ने लिखा है - "भूमिहार एक अच्छीकिस्म की बहादुर प्रजाति है, जिसमे आर्य जाति की सभीविशिष्टताएं विद्यमान है। ये स्वाभाव से निर्भीक व हावी होनेवालें होते हैं।"
३. पंडित अयोध्या प्रसाद ने अपनी पुस्तक "वप्रोत्तम परिचय" मेंभूमिहार को- भूमि की माला या शोभा बढ़ाने वाला, अपनेमहत्वपूर्ण गुणों तथा लोकहितकारी कार्यों से भूमंडल कोशुशोभित करने वाला, समाज के हृदयस्थल पर सदा विराजमान-सर्वप्रिय ब्राह्मण कहा है।
४. विद्वान योगेन्द्र नाथ भट्टाचार्य ने अपनी पुस्तक हिन्दू कास्ट &सेक्ट्स में लिखा है की भूमिहार ब्राह्मण की सामाजिक स्थितिका पता उनके नाम से ही लग जाता है, जिसका अर्थ हैभूमिग्राही ब्राह्मण। पंडित नागानंद वात्स्यायन द्वारा लिखी गईपुस्तक - " भूमिहार ब्राह्मण इतिहास के दर्पण में "
" भूमिहारो का संगठन जाति के रूप में "
भूमिहार ब्राह्मण जाति ब्राह्मणों के विभिन्न भेदों और शाखाओंके अयाचक लोगो का एक संगठन ही है. प्रारंभ में कान्यकुब्जशाखा से निकले लोगो को भूमिहार ब्राह्मण कहा गया, उसकेबाद सारस्वत, महियल, सरयूपारी, मैथिल, चितपावन, कन्नड़आदि शाखाओं के अयाचक ब्राह्मण लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश तथाबिहार में इन लोगो से सम्बन्ध स्थापित कर भूमिहार ब्राह्मणों मेंमिलते गए.मगध के बाभनो और मिथिलांचल के पश्चिमा तथाप्रयाग के जमींदार ब्राह्मण भी अयाचक होने से भूमिहार ब्राह्मणोंमें ही सम्मिलित होते गए.
भूमिहार ब्राह्मण के कुछ मूलों ( कूरी ) के लोगो का भूमिहारब्राह्मण में संगठित होने की एक सूची यहाँ दी जा रही है :
१. कान्यकुब्ज शाखा से :- दोनवार ,सकरवार,किन्वार, ततिहा ,ननहुलिया, वंशवार के तिवारी, कुढ़ानिया, दसिकर, आदि.
२. सरयू नदी के तट पर बसने वाले से : - गौतम, कोल्हा(कश्यप), नैनीजोर के तिवारी , पूसारोड (दरभंगा) खीरी से आयेपराशर गोत्री पांडे, मुजफ्फरपुर में मथुरापुर के गर्ग गोत्री शुक्ल,गाजीपुर के भारद्वाजी, मचियाओं और खोर के पांडे, म्लाओं केसांकृत गोत्री पांडे, इलाहबाद के वत्स गोत्री गाना मिश्र ,आदि.
३. मैथिल शाखा से : - मैथिल शाखा से बिहार में बसने वाले कईमूल के भूमिहार ब्राह्मण आये हैं.इनमे सवर्ण गोत्री बेमुवार औरशांडिल्य गोत्री दिघवय - दिघ्वैत और दिघ्वय संदलपुर, बहादुरपुरके चौधरी प्रमुख है. (चौधरी, राय, ठाकुर, सिंह मुख्यतः मैथिलही प्रयोग करते है )
४. महियालो से : - महियालो की बाली शाखा के पराशर गोत्रीब्राह्मण पंडित जगनाथ दीक्षित छपरा (बिहार) में एकसार स्थानपर बस गए. एकसार में प्रथम वास करने से वैशाली,मुजफ्फरपुर, चैनपुर, समस्तीपुर, छपरा, परसगढ़, सुरसंड, गौरैयाकोठी, गमिरार, बहलालपुर , आदि गाँव में बसे हुए पराशर गोत्रीएक्सरिया मूल के भूमिहार ब्राह्मण हो गए.
५. चित्पावन से : - न्याय भट्ट नामक चितपावन ब्राह्मणसपरिवार श्राध हेतु गया कभी पूर्व काल में आये थे.अयाचकब्रह्मण होने से इन्होने अपनी पोती का विवाह मगध के इक्किलपरगने में वत्स गोत्री दोनवार के पुत्र उदय भान पांडे से कर दियाऔर भूमिहार ब्राह्मण हो गए.पटना डाल्टनगंज रोड परधरहरा,भरतपुर आदि कई गाँव में तथा दुमका,भोजपुर,रोहतासके कई गाँव में ये चित्पवानिया मूल के कौन्डिल्य गोत्री अथर्वभूमिहार ब्राह्मण रहते हैं
१. सर्वप्रथम १८८५ में ऋषिकुल भूषण काशी नरेश महाराज श्रीइश्वरी प्रसाद सिंह जी ने वाराणसी में अखिल भारतीय भूमिहारब्राह्मण महासभा की स्थापना की.
२. १८८५ में अखिल भारतीय त्यागी महासभा की स्थापना मेरठमें हुई.
३. १८९० में मोहियल सभा की स्थापना हुई.
४. १९१३ में स्वामी सहजानंद जी ने बलिया में आयोजित
५. १९२६ में पटना में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मणमहासभा का अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता चौधरी रघुवीरनारायण सिंह त्यागी ने की.
६. १९२७ में प्रथम याचक ब्राह्मण सम्मलेन की अध्यक्षता सरगणेश दत्त ने की.
७. १९२७ में मेरठ में ही अखिल भारतीय त्यागी महासभा कीअध्यक्षता राय बहादुर जगदेव राय ने की.
८. १९२६-२७ में अपने अधिवेशन में कान्यकुब्ज ब्राह्मणों नेप्रस्ताव पारित कर भूमिहार ब्राह्मणों को अपना अंग घोषितकरते हुए अपने समाज के गठन में सम्मलित होने का निमंत्रणदिया.
९. १९२९ में सारस्वत ब्राह्मण महासभा ने भूमिहार ब्राह्मणों कोअपना अंग मानते हुए अनेक प्रतिनिधियों को अपने संगठन कासदस्य बनाया.
१०. १९४५ में बेतिया (बिहार) में अखिल भारतीय भूमिहारब्राह्मण महासम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता डा.बी.एस.पूंजे(चित्पावन ब्राह्मण) ने की.
११. १९६८ में श्री सूर्य नारायण सिंह (बनारस ) के प्रयास सेब्रहामर्शी सेवा समिति का गठन हुआ.और इश वर्ष रोहनिया मेंएक अधिवेशन पंडित अनंत शास्त्री फडके (चित्पावन ) कीअध्यक्षता में हुआ.
१२. १९७५ में लक्नाऊ में भूमेश्वर समाज तथा कानपूर मेंभूमिहार ब्राह्मण समाज की स्थापना हुई.
१३. १९७९ में अखिल भारतीय ब्रह्मर्षि परिषद् का गठन हुआ.
१४. ८ मार्च १९८१ गोरखपुर में भूमिहार ब्राह्मण समाज कागठन
१५. २३ अक्टूबर १९८४ में गाजीपुर में प्रांतीय भुमेश्वर समाजका अधिवेशन जिसकी अध्यक्षता श्री मथुरा राय नेकी.डा.रघुनाथ सिंह जी ने इस सम्मलेन का उदघाटन किया.
१६. १८८९ में अल्लाहाबाद में भूमेश्वर समाज की स्थापना हुई.
" भूमिहार " शब्द कहा और कबसे अस्तित्व में आया ?
३. १८९० में मोहियल सभा की स्थापना हुई.
४. १९१३ में स्वामी सहजानंद जी ने बलिया में आयोजित
५. १९२६ में पटना में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मणमहासभा का अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता चौधरी रघुवीरनारायण सिंह त्यागी ने की.
६. १९२७ में प्रथम याचक ब्राह्मण सम्मलेन की अध्यक्षता सरगणेश दत्त ने की.
७. १९२७ में मेरठ में ही अखिल भारतीय त्यागी महासभा कीअध्यक्षता राय बहादुर जगदेव राय ने की.
८. १९२६-२७ में अपने अधिवेशन में कान्यकुब्ज ब्राह्मणों नेप्रस्ताव पारित कर भूमिहार ब्राह्मणों को अपना अंग घोषितकरते हुए अपने समाज के गठन में सम्मलित होने का निमंत्रणदिया.
९. १९२९ में सारस्वत ब्राह्मण महासभा ने भूमिहार ब्राह्मणों कोअपना अंग मानते हुए अनेक प्रतिनिधियों को अपने संगठन कासदस्य बनाया.
१०. १९४५ में बेतिया (बिहार) में अखिल भारतीय भूमिहारब्राह्मण महासम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता डा.बी.एस.पूंजे(चित्पावन ब्राह्मण) ने की.
११. १९६८ में श्री सूर्य नारायण सिंह (बनारस ) के प्रयास सेब्रहामर्शी सेवा समिति का गठन हुआ.और इश वर्ष रोहनिया मेंएक अधिवेशन पंडित अनंत शास्त्री फडके (चित्पावन ) कीअध्यक्षता में हुआ.
१२. १९७५ में लक्नाऊ में भूमेश्वर समाज तथा कानपूर मेंभूमिहार ब्राह्मण समाज की स्थापना हुई.
१३. १९७९ में अखिल भारतीय ब्रह्मर्षि परिषद् का गठन हुआ.
१४. ८ मार्च १९८१ गोरखपुर में भूमिहार ब्राह्मण समाज कागठन
१५. २३ अक्टूबर १९८४ में गाजीपुर में प्रांतीय भुमेश्वर समाजका अधिवेशन जिसकी अध्यक्षता श्री मथुरा राय नेकी.डा.रघुनाथ सिंह जी ने इस सम्मलेन का उदघाटन किया.
१६. १८८९ में अल्लाहाबाद में भूमेश्वर समाज की स्थापना हुई.
" भूमिहार " शब्द कहा और कबसे अस्तित्व में आया ?
भूमिपति ब्राह्मणों के लिए पहले जमींदार ब्राह्मण शब्द का प्रयोगहोता था..याचक ब्राह्मणों के एक दल ने ने विचार किया कीजमींदार तो सभी जातियों को कह सकते हैं,फिर हममे औरजमीन वाली जातियों में क्या फर्क रह जाएगा.काफी विचारविमर्श के बाद " भूमिहार " शब्द अस्तित्व में आया." भूमिहारब्राह्मण " शब्द के प्रचलित होने की कथा भी बहुत रोचक है.
बनारस के महाराज ईश्वरी प्रसाद सिंह ने १८८५ में बिहार औरउत्तर प्रदेश के जमींदार ब्राह्मणों की एक सभा बुलाकर प्रस्तावरखा की हमारी एक जातीय सभा होनी चाहिए.सभा बनाने केप्रश्न पर सभी सहमत थे.परन्तु सभा का नाम क्या हो इस परबहुत ही विवाद उत्पन्न हो गया.मगध के बाभनो ने जिनके नेतास्व.कालीचरण सिंह जी थे ,सभा का नाम " बाभन सभा " करनेका प्रस्ताव रखा.स्वयं महराज "भूमिहार ब्राह्मण सभा " के पक्षमें थे.बैठक मैं आम राय नहीं बन पाई,अतः नाम पर विचार करनेहेतु एक उपसमिति गठित की गई.सात वर्षो के बाद समिति कीसिफारिश पर " भूमिहार ब्राह्मण " शब्द को स्वीकृत किया गयाऔर साथ ही साथ इस शब्द के प्रचार व् प्रसार का काम भी हाथमें लिया गया.इसी वर्ष महाराज बनारस तथा स्व.लंगट सिंह जीके सहयोग से मुजफ्फरपुर में एक कालेज खोला गया.बाद मेंतिरहुत कमिश्नरी के कमिश्नर का नाम जोड़कर इसे जी.बी.बी.कालेज के नाम से पुकारा गया. आज वही कालेज लंगट सिंहकालेज के नाम से प्रसिद्द है.
भूमिहार ब्राह्मणों के इतिहास को पढने से पता चलता है कीअधिकांश समाजशास्त्रियों ने भूमिहार ब्राह्मणों को कान्यकुब्जकी शाखा माना है. भूमिहार ब्राह्मन का मूलस्थान मदारपुर है जोकानपुर - फरूखाबाद की सीमा पर बिल्हौर स्टेशन के पास है..१५२८ में बाबर ने मदारपुर पर अचानक आक्रमण कर दिया.इस भीषण युद्ध में वहा के ब्राह्मणों सहित सबलोग मार डालेगए. इस हत्याकांड से किसी प्रकार अनंतराम ब्राह्मण की पत्नीबच निकली थी जो बाद में एक बालक को जन्म दे कर इस लोकसे चली गई. इस बालक का नाम गर्भू तेवारी रखा गया. गर्भूतेवारी के खानदान के लोग कान्यकुब्ज प्रदेश के अनेक गाँव मेंबसते है. कालांतर में इनके वंशज उत्तर प्रदेश तथा बिहार केविभिन्न गाँव में बस गए. गर्भू तेवारी के वंशज भूमिहार ब्रह्मणकहलाये . इनसे वैवाहिक संपर्क रखने वाले समस्त ब्राह्मणकालांतर में भूमिहार ब्राह्मण कहलाये
अंग्रेजो ने यहाँ के सामाजिक स्तर का गहन अध्ययन कर अपनेगजेतिअरों एवं अन्य पुस्तकों में भूमिहारो के उपवर्गों का उल्लेखकिया है गढ़वाल काल के बाद मुसलमानों से त्रस्त भूमिहारब्राह्मन ने जब कान्यकुब्ज क्षेत्र से पूर्व की ओर पलायन प्रारंभकिया और अपनी सुविधानुसार यत्र तत्र बस गए तो अनेकउपवर्गों के नाम से संबोधित होने लगे, यथा - ड्रोनवार , गौतम,कान्यकुब्ज, जेथारिया आदि. अनेक कारणों, अनेक रीतियों सेउपवर्गों का नामकरण किया गया. कुछ लोगो ने अपने आदिपुरुष से अपना नामकरण किया और कुछ लोगो ने गोत्र से. कुछका नामकरण उनके स्थान से हुवा जैसे - सोनभद्र नदी के किनारेरहने वालो का नाम सोन भरिया, सरस्वती नदी के किनारे वालेसर्वारिया, सरयू नदी के पार वाले सरयूपारी, आदि. मूलडीह केनाम पर भी कुछ लोगो का नामकरण हुआ जैसे, जेथारिया,हीरापुर पण्डे, वेलौचे, मचैया पाण्डे, कुसुमि तेवरी, ब्र्हम्पुरिये ,दीक्षित , जुझौतिया , आदि भूमिहार ब्राह्मण (सरयू नदी के तटपर बसने वाले ) पिपरा के मिसिर , सोहगौरा के तिवारी ,हिरापुरी पांडे, घोर्नर के तिवारी , माम्खोर के शुक्ल, भरसी मिश्र,हस्त्गामे के पांडे, नैनीजोर के तिवारी , गाना के मिश्र , मचैया केपांडे, दुमतिकार तिवारी , आदि. भूमिहार ब्राह्मन में हैं. " वे हीब्राह्मण भूमि का मालिक होने से भूमिहार कहलाने लगे औरभूमिहारों को अपने में लेते हुए भूमिहार लोग पूर्व में कनौजियासे मिल जाते हैं
राज पाट
0१- बनारस का साम्राज्य
०२. बेतिया राज यह बिहार की दूसरी सबसे बड़ी जमींदारीथी इसका भूभाग eighteen hundred square मिल्स परनियंत्रण
०३. टिकारी राज 2,०४६ गावो और 7,500 km2 के बड़ेभूभाग पर नियंत्रण
०४. हथुआ राज 1,३६५ गावो पर और एक बड़े भूभाग परनियंत्रण
०५. तमकुही राज
०६. अनापुर राज
०७. अमावा राज
०८. बभनगावां राज
०९. भरतपुरा राज
१०. धरहरा राज
११. शिवहर राज
१२. मकसुदपुर राज
१३. औसानगंज राज
इसके अलावा ये भी स्वन्रियांत्रित जागीरे थी
नरहन स्टेट, जोगनी एस्टेट, पर्सागढ़ एस्टेट (छपरा ), गोरियाकोठी एस्टेट (सिवान ), रूपवाली एस्टेट, जैतपुर एस्टेट, हरदीएस्टेट, ऐनखाओं जमींदारी, ऐशगंज जमींदारी, भेलावर गढ़,आगापुर स्टेट, पैनाल गढ़, लट्टा गढ़, कयाल गढ़, रामनगरजमींदारी, रोहुआ एस्टेट, राजगोला जमींदारी, पंडुई राज,केवटगामा जमींदारी, घोसी एस्टेट, परिहंस एस्टेट, धरहरा एस्टेट,रंधर एस्टेट, अनापुर एस्टेट ( इलाहाबाद), चैनपुर, मंझा,मकसूदपुर, रुसी, खैरअ, मधुबनी, नवगढ़ - भूमिहार से सम्बंधितहै असुराह एस्टेट, कयाल औरंगाबाद में बाबु अमौना, तिलकपुर,शेखपुरा स्टेट, जहानाबाद में तुरुक तेलपा स्टेट, क्षेओतर गया,बारों एस्टेट (इलाहाबाद), पिपरा कोय्ही एस्टेट (मोतिहारी), औरभी बहुत सारे पूरी जानकारी उपस्थित नहीं
Comments
Post a Comment