ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी दंड के अधिकारी, जानें इस चौपाई का सही मतलब
Common Myth
तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में लिखी गई चौपाई; “ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी सब ताड़ना के अधिकारी” आपने जरूर सुनी होगी। इस चौपाई को लेकर लोगों को कई गलतफहमियां हैं। कुछ का मानना है कि अपनी चौपाई के माध्यम से तुलसीदास ने नारी, पशु और वंचितों को दंड का भागी बताया है।
Fact
यद्यपि यह सिर्फ एक दावा है पर इस चौपाई को लेकर तरह-तरह के दावे कई सालों से सोशल मीडिया और इसके इतर आम लोगों के बीच अलग-अलग आशय में प्रचलित हैं. रामचरितमानस की इस चौपाई का हर कोई अपने हिसाब से अलग-अलग अर्थ निकालता है और उससे बड़ी बात यह है कि उस आशय को दूसरों के सामने प्रकट करता है और इस तरह कई लोग गलत अर्थ के आधार पर नारी, पशु और वंचित समुदाय के खिलाफ की जा रही ज्यादती को सही ठहराते हैं तो वहीं कई बार इस चौपाई के गलत आधार पर हिन्दू धर्म और इसके धर्म ग्रंथों पर नारी, पशु और वंचित समाज के अपमान का आरोप लगाकर भ्रम फैलाते हैं. यद्यपि तथ्यों की परख के लिए आमतौर पर हम प्रत्यक्ष प्रमाण की गैरमौजूदगी वाले दावों को यूं ही छोड़ देते हैं या यूं कहें कि हम उनकी सत्यता जानने का प्रयास नहीं करते जबकि हकीकत यह है कि किसी भी तरह का भ्रामक दावा समाज में अशांति, आपस में वैमनस्य, सांप्रदायिक नफरत, किसी व्यक्ति का चरित्रहनन कर सकता है.
रामचरित मानस की चौपाई
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी।
सकल ताडना के अधिकारी।।
चौपाई का सही अर्थ
चौपाई का अर्थ जानने से पहले हमने रामचरित मानस के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास किया. इसी क्रम में हमें विकिपीडिया पर प्रकाशित एक लेख मिला जिसमें रामचरित मानस से जुड़ी कई बातों का उल्लेख है. इसी तरह का एक और लेख हमें मिला जिसमे रामचरित मानस की भाषा एवं वर्तनी से जुड़ी कुछ जानकारियों का उल्लेख है मसलन रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास हैं, रामचरित मानस की भाषा अवधी है और रामचरित मानस से जुड़े अन्य कई वृतांतों का भी इस लेख में उल्लेख है.
श्रीरामचरितमानस
यह लेख मुख्य रूप से अथवा पूर्णतया एक ही स्रोत पर निर्भर करता है। कृपया इस लेख में उचित संदर्भ डालकर इसे बेहतर बनाने में मदद करें । श्री रामचरितमानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में रचित एक महाकाव्य है। इस ग्रन्थ को अवधी साहित्य (हिंदी साहित्य)
अवधी भाषा के जानकारों के अनुसार इस चौपाई का सही अर्थ जानने के लिए पहले इस चौपाई में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ का ज्ञान होना जरुरी है जो इस प्रकार हैं “ढोल यानि ढोलक, गवार यानि ग्रामीण या अनपढ़, शूद्र यानि वंचित वर्ग, पशु यानि जानवर, नारी यानि स्त्री, सकल मतलब पूरा या सम्पूर्ण, ताड़ना यानि पहचनाना या परख करना, अधिकारी यानि हक़दार” तो इस प्रकार इस पूरे चौपाई का अर्थ यह हुआ कि “ढोलक, अनपढ़, वंचित, जानवर और नारी, यह पांच पूरी तरह से जानने के विषय हैं.” अवधी भाषा के एक जानकार ने हमें बताया कि तुलसीदास इस चौपाई के माध्यम से यह कहना चाहते थे कि, ढोलक को अगर सही से नहीं बजाया जाय तो उससे कर्कश ध्वनि निकलती है अतः ढोलक पूरी तरह से जानने या अध्ययन का विषय है इसी तरह अनपढ़ व्यक्ति आपकी किसी बात का गलत अर्थ निकाल सकता है या आप उसकी किसी बात को ना समझकर अनायास उसका उपहास उड़ा सकते हैं अतः उसके बारे में अच्छी तरह से जान लेना चाहिए, वंचित व्यक्ति को भी जानकर ही आप किसी कार्य में उसका सहयोग ले सकते हैं अन्यथा कार्य की असफलता का डर बना रहता है, पशु के पास सोचने एवं समझने की क्षमता मनुष्य जितनी नहीं होती इसलिए कई बार वो हमारे किसी व्यवहार, आचरण, क्रियाकलाप या गतिविधि से आहत हो जाते हैं और ना चाहते हुए भी असुरक्षा के भाव में असामान्य कार्य कर बैठते हैं अतः पशु को भी भली-भांति जान लेना चाहिए, इसी प्रकार अगर आप स्त्रियों को नहीं समझते तो उनके साथ जीवन निर्वहन मुश्किल हो जाता है यहां स्त्री का तात्पर्य माता, बहन, पत्नी, मित्र या किसी भी ऐसी महिला से है जिनसे आप जीवनपर्यन्त जुड़े रहते हैं, ऐसे में आपसी सूझबूझ काफी आवश्यक होती है.
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